🎯 RBI का स्पष्ट संदेश: हम किसी 'टारगेटेड' रुपया स्तर को निशाना नहीं बनाते, गिरावट डॉलर की डिमांड का नतीजा

 

🎯 RBI का स्पष्ट संदेश: हम किसी 'टारगेटेड' रुपया स्तर को निशाना नहीं बनाते, गिरावट डॉलर की डिमांड का नतीजा

The governor also said that the Reserve Bank has "very good" buffers of foreign exchange reserves, and there is no need for concern on the external sector.



🤔 RBI के बयान का क्या मतलब है?

RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​का यह बयान भारतीय रुपये (Rupee) के लगातार मूल्यह्रास (depreciation) पर जारी बहस के बीच आया है। उनका कहना है कि:

"हम रुपये के किसी भी स्तर को निशाना नहीं बनाते। रुपये की गिरावट अमेरिकी डॉलर की मांग (demand) के कारण होती है।"

यह बयान दो प्रमुख बातों को स्पष्ट करता है:

  1. कोई निश्चित विनिमय दर (Exchange Rate) लक्ष्य नहीं: RBI का उद्देश्य रुपये को किसी विशिष्ट मूल्य (जैसे ₹80 या ₹85 प्रति डॉलर) पर बनाए रखना नहीं है।

  2. बाजार-निर्धारित विनिमय दर (Market-Determined Rate): रुपये का मूल्य मांग (Demand) और आपूर्ति (Supply) के बाजार-आधारित सिद्धांतों पर निर्धारित होता है।

भारत में एक 'Managed Float' (प्रबंधित फ्लोटिंग) एक्सचेंज रेट सिस्टम है। इसका मतलब है कि RBI केवल अत्यधिक और अव्यवस्थित अस्थिरता (excessive and disorderly volatility) को नियंत्रित करने के लिए ही बाजार में हस्तक्षेप करता है, न कि किसी खास स्तर को बनाए रखने के लिए।

📈 डॉलर की डिमांड क्यों बढ़ रही है?

गवर्नर के अनुसार, रुपये में गिरावट का मुख्य कारण अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मांग है। यह डिमांड कई वैश्विक और घरेलू कारकों से संचालित होती है:

1. वैश्विक कारक (Global Factors)

  • मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था: अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Fed) द्वारा ब्याज दरों को ऊँचा बनाए रखने या बढ़ाने की आशंका से अमेरिकी बॉन्ड और डॉलर-आधारित संपत्ति (assets) अधिक आकर्षक हो जाती हैं।

  • पूंजी का बहिर्वाह (Capital Outflows): जब अमेरिकी दरें बढ़ती हैं, तो विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) उभरते बाजारों (Emerging Markets) जैसे भारत से पैसा निकालकर अमेरिकी बाजार में निवेश करते हैं। इससे डॉलर की मांग बढ़ती है।

  • 'सेफ हेवन' डिमांड: वैश्विक अनिश्चितता (Global Uncertainty) या भू-राजनीतिक तनाव (Geopolitical Tension) के समय, निवेशक डॉलर को एक 'सुरक्षित आश्रय' (Safe Haven) मुद्रा मानते हैं।

2. घरेलू कारक (Domestic Factors)

  • व्यापार घाटा (Trade Deficit): भारत कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सोने जैसी वस्तुओं का एक बड़ा आयातक (importer) है। जब आयात निर्यात से अधिक होता है (Trade Deficit), तो आयातों का भुगतान करने के लिए डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ता है।

  • उच्च क्रूड तेल की कीमतें: भारत की तेल आयात पर भारी निर्भरता के कारण, क्रूड की कीमतों में वृद्धि से डॉलर की आवश्यकता में नाटकीय वृद्धि होती है।


🛡️ RBI का हस्तक्षेप: बचाव या अस्थिरता प्रबंधन?

गवर्नर के बयान के बावजूद, RBI बाजार में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप (Intervention) करता रहता है। हालांकि, यह हस्तक्षेप रुपये को किसी निश्चित स्तर पर रखने के लिए नहीं है, बल्कि अव्यवस्थित अस्थिरता को कम करने के लिए है।

  • उद्देश्य: अचानक और तेज उतार-चढ़ाव (volatility) से बचने के लिए, जो आयातकों (Importers) और निर्यातकों (Exporters) के लिए अनिश्चितता पैदा करते हैं।

  • ढाल (Shield): RBI के पास मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) है, जिसका उपयोग वह रुपये को चरम गिरावट से बचाने के लिए करता है। गवर्नर ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत का भंडार मजबूत है और बाहरी क्षेत्र (External Sector) को लेकर चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

💡 इस नीति का अर्थव्यवस्था पर असर

प्रभावविवरण
निर्यातकों के लिए लाभकमजोर रुपया भारतीय निर्यात को वैश्विक बाजार में सस्ता बनाता है, जिससे IT और फार्मा जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को फायदा होता है।
आयातकों के लिए लागतआयात महंगा हो जाता है। कच्चे तेल, मशीनरी और अन्य आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ती है, जिससे घरेलू महंगाई (Inflation) बढ़ सकती है।
निवेशकों के लिएडॉलर-मूल्यवान संपत्ति (जैसे अमेरिकी स्टॉक, विदेशी म्यूचुअल फंड) रुपये के संदर्भ में अधिक मूल्यवान हो जाती हैं।
वित्तीय स्थिरताRBI का फोकस स्थिरता पर होने से भारतीय बाजार में अचानक बड़ी हलचल (Panic) की संभावना कम हो जाती है।

🏁 निष्कर्ष

RBI गवर्नर का यह स्पष्टीकरण एक आवश्यक मौद्रिक नीति संदेश है: बाजार ही रुपये का मूल्य तय करेगा। RBI एक 'रेफरी' की तरह काम करेगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि खेल (यानी विदेशी मुद्रा बाजार) निष्पक्ष और व्यवस्थित तरीके से चले, न कि किसी एक टीम (यानी रुपये का मूल्य) को जीतने में मदद करेगा।

निवेशकों और व्यवसायों को अब रुपये के किसी 'टारगेट' स्तर की उम्मीद करने के बजाय, वैश्विक डॉलर की मांग और घरेलू व्यापार संतुलन जैसे मौलिक कारकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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